राष्ट्रीय

ईरान और ताइवान ने मानकों पर खरा न उतरने पर भारत द्वारा निर्यात चाय लेने से इनकार किया

ऊपर उल्लेखित दो अधिकारियों में से एक ने कहा, 'हालांकि, भारत से निर्यात की गई अस्वीकृत चाय की मात्रा बेहद कम थी.'

नई दिल्ली: ताइवान और ईरान ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार मानकों पर खरा न उतरने के चलते और स्वीकृत सीमा से अधिक कीटनाशकों की उपस्थिति के कारण भारतीय चाय के तीन कंटेनरों को लेने से इनकार कर दिया.

वित्तीय संकट के कारण श्रीलंका से चाय के निर्यात में आई गिरावट ने भारतीय चाय के लिए नये बाजार खोले थे, हालांकि हाल ही में भारतीय चाय को अस्वीकारे जाने से केंद्र सरकार के नए बाजारों पर कब्जा करने के प्रयास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

ऊपर उल्लेखित दो अधिकारियों में से एक ने कहा, ‘हालांकि, भारत से निर्यात की गई अस्वीकृत चाय की मात्रा बेहद कम थी.’

नाम न छापने की शर्त पर अधिकारी ने कहा, ‘सिर्फ दो कंटेनर ताइवान से वापस आए हैं और एक ईरान से. ताइवान में अधिकतम अवशेष स्तर [Maximum residue level या एमआरएल] बहुत कम है और निर्यातक जोखिम से अवगत हैं.’

एमआरएल खाद्य सामग्री में ज्यादातर तब मिलता है, जब कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है. निर्यातकों का कहना है कि करीब 95 फीसदी अस्वीकृत चाय कंटेनरों में क्विनालफॉस स्वीकृत सीमा से अधिक पाया गया था.

टी बोर्ड ऑफ इंडिया के एक पूर्व अधिकारी ने बताया कि भारत में क्विनालफॉस रसायन के लिए एमआरएल 0.01 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम है. यह मानक दुनिया के सबसे सख्त मानकों में से एक है. यूरोपीय संघ के लिए मानक 0.7 प्रति किलोग्राम और जापान के लिए यह 0.1 प्रति किलोग्राम है.

इस बीच अधिकारी ने बताया कि ईरान में अस्वीकार किया गया कंटेनर फाइटोसैनिटरी (पौधों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार मानकों पर खरा न उतरना) मुद्दे के कारण था. उन्होंने कहा, ‘यह निर्माता की गलती नहीं थी, बल्कि निर्यातक को दोष दिया जाना चाहिए.’

ताइवान 0.01 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) के साथ अत्यंत सख्त एमआरएल का नियम पालन करता है, जिसके चलते भारत के साथ-साथ वियतनाम और चीन के निर्यातकों के लिए भी इसका अनुपालन करना मुश्किल हो जाता है.

ईरान में भारतीय चाय निर्यात के लिए श्रीलंका ही एकमात्र प्रतिद्वंदी था. श्रीलंका की अर्थव्यवस्था द्वारा आर्थिक चुनौतियों का सामना करने के कारण ईरान का पूरा बाजार भारतीय चाय निर्यातकों के लिए खुला है.

आंकड़ों से पता चलता है कि भारत का चाय निर्यात वित्त वर्ष 2021 में घटकर 700 मिलियन अमेरिकी डॉलर रह गया है, जो 2018 में 785 मिलियन अमेरिकी डॉलर था.

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत के चाय उद्योग में ज्यादा सुधार नहीं हुए हैं. अधिकांश उत्पादन और निर्यात अभी भी पारंपरिक तरीके से किया जाता है.

कीटनाशकों, रसायनों के स्वीकार्य सीमा से अधिक होने के चलते चाय की खेपों की श्रृंखला हुई थी खारिज

उल्लेखनीय है कि बीते हफ्ते आई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय चाय निर्यातक संघ (आईटीईए) के अध्यक्ष अंशुमान कनोरिया ने बताया था कि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू दोनों खरीदारों ने कीटनाशकों और रसायनों की स्वीकार्य सीमा से अधिक होने के कारण चाय की खेपों की एक श्रृंखला को खारिज कर दिया था.

उन्होंने बताया था कि देश में बेची जाने वाली सभी चाय भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के मानदंडों के अनुरूप होनी चाहिए. हालांकि, अधिकांश खरीदार चाय खरीद रहे हैं जिसमें असामान्य रूप से उच्च रासायनिक सामग्री होती है.

कनोरिया ने कहा कि कई देश चाय के लिए सख्त नियमों का पालन कर रहे हैं. अधिकांश देश यूरोपीय संघ के मानकों का पालन करते हैं, जो एफएसएसएआई के नियमों से अधिक कठोर हैं.

उन्होंने यह भी बताया था कि इस मुद्दे पर चाय पैकरों और निर्यातकों की ओर से शिकायतें मिली हैं.

इसके बाद वाणिज्य मंत्रालय के तहत आने वाले चाय बोर्ड ने उत्पाद बेचने से पहले एफएसएसएआई के गुणवत्ता मानकों का कड़ाई से पालन करने के लिए सभी उत्पादकों और विक्रेताओं को निर्देश जारी किए थे.

एक अधिकारी ने कहा था कि बोर्ड ने चेतावनी दी है कि एफएसएसएआई गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहा है. ब्रोकरों के विचार प्राप्त होने तक और इस मामले में चाय बोर्ड के आगे के निर्देश आने तक कोई भी चाय की खेप गोदाम से बाहर नहीं जानी चाहिए.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button