इन 3 चीजों से जूझ रहे भारत के बुजुर्ग, डॉक्टरों के पास ढूंढते हैं इलाज
न केवल समाज बल्कि परिवार में बुजुर्ग कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. हाल ही में बुजुर्गों के लिए काम करने वाले एनजीओ हेल्पेज इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में अधिकांश भारतीय परिवारों में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक संवेदनशील विषय है.
नई दिल्ली: भारत में बुजुर्गों को हमेशा से परिवार की रीढ़ माना गया है और सम्मान के मामले में सबसे ऊपरी स्तर पर रखा गया है लेकिन बदलते माहौल के चलते बुजुर्ग आज हाशिए पर पहुंच गए हैं.
यही वजह है कि यहां आए दिन बुजुर्गों के शारीरिक या मानसिक शोषण और इनके साथ दुर्व्यवहार को लेकर कोई न कोई घटना सुनने को मिल जाती है. न केवल समाज बल्कि परिवार में बुजुर्ग कई परेशानियों से जूझ रहे हैं. हाल ही में बुजुर्गों के लिए काम करने वाले एनजीओ हेल्पेज इंडिया की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत में अधिकांश भारतीय परिवारों में बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार एक संवेदनशील विषय है. वहीं अस्पतालों में जैरिएट्रिक विभाग से जुड़े स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो समाज और परिवार की परेशानियों का इलाज बुजुर्ग अस्पतालों में ढूंढ रहे हैं.
हेल्पेज इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि बुजुर्गों को प्रताड़ित करने वाले तीन प्रमुख लोग हैं. रिश्तेदार 36 फीसदी, बेटे 35 फीसदी और बहू 21 फीसदी. जबकि 57 फीसदी बुजुर्गों ने अनादर होने की शिकायत की है. इसके अलावा, मौखिक दुर्व्यवहार 38 फीसदी, उपेक्षा 33 फीसदी, आर्थिक शोषण 24 फीसदी, और 13 फीसदी बुजुर्गों ने पिटाई और थप्पड़ के रूप में शारीरिक शोषण की बात कही. सिर्फ दिल्ली की बात करें तो यहां 74 फीसदी बुजुर्गों को लगता है कि इस तरह के दुर्व्यवहार समाज में प्रचलित हैं जबकि 12 फीसदी स्वयं पीड़ित थे.
बुजुर्ग अपने बेटे 35 फीसदी और बहुओं 44 फीसदी को दुर्व्यवहार का सबसे बड़ा अपराधी मानते हैं. दुर्व्यवहार का शिकार होने वाले लोगों में राष्ट्रीय स्तर पर 47 फीसदी ने कहा कि उन्होंने दुर्व्यवहार की प्रतिक्रिया के रूप में परिवार से बात करना बंद कर दिया है जबकि दिल्ली में यह आंकड़ा 83 फीसदी है.
दिल्ली एम्स के पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर और प्राइमस सुपस्पेशलिटी अस्पताल के जेरिएट्रिक विभाग में एचओडी डॉ. विजय गुर्जर बताते हैं कि उनके पास रोजाना बुजुर्ग मरीज आते हैं. जिनमें अधिकांश मामलों में वे बीमारियों से कम जबकि सामाजिक और पारिवारिक दुर्व्यवहार से जूझ रहे होते हैं. कई बार ऐसे मरीजों को साइकॉलोजिस्ट या साइकेट्रिस्ट के पास भेजना पड़ता है. गुर्जर कहते हैं कि कोई विशेष बीमारी न होने पर जब मरीजों को बहुत कम दवाएं दी जाती हैं तो वे शिकायत करते हैं और ज्यादा दवाओं की मांग करते हैं.
बुजुर्गों के आए ऐसे-ऐसे मामले
. विजय गुर्जर बताते हैं कि हाल ही में एनडीएमसी में काम चुके एक बुजुर्ग दंपत्ति इलाज के लिए आए. उन्होंने बताया कि उनके पोते ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया और बहू ने घरेलू हिंसा का मुकदमा दायर कर दिया. वहीं घर से बाहर निकाल दिए जाने के बाद उन्हें मजबूरी में मुकदमा करना पड़ा. अब कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने के कारण न केवल शारीरिक और मानसिक बल्कि आर्थिक रूप से भी वे काफी परेशान हैं.
. दूसरा मामला एक बुजुर्ग महिला का था, जो अपनी किसी छोटी-मोटी बीमारी को लेकर इलाज के लिए आईं लेकिन उनकी परेशानी सिर्फ अकेलेपन की थी. ऐसे ही कई और भी बुजुर्ग मरीज आए जो एल्डरली अब्यूज, अकेलेपन, गरीबी और घरवालों की उपेक्षा से जूझ रहे हैं और दवाओं के सहारे ठीक करने की कोशिश करते हैं.
. वहीं एक मामला एक वृद्ध महिला का था जो हर 15 दिन में डॉक्टर के पास आती थीं. उनके कोई बच्चा नहीं था. सिर्फ घबराहट और बेचैनी उनकी बीमारी थी. कई बार उन्हें बताया गया कि वे ठीक हैं लेकिन वे ये बात मानने को तैयार ही नहीं थीं. दवाएं लेकर वे खुद को ठीक महसूस करती थीं.
इन 3 चीजों से जूझ रहे बुजुर्ग
डॉ. विजय कहते हैं कि इस समय बुजुर्गों का साथ देने की जरूरत है. अपने बच्चों को माता-पिता की कद्र करना सिखाने से पहले खुद ये सब करके दिखाने की जरूरत है.
हेल्पेज इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि भारत में बुजुर्ग तीन प्रमुख समस्याओं से जूझ रहे हैं. इनमें गरीबी, अकेलापन और परिवार की ओर से उपेक्षा शामिल है. वहीं डॉ. विजय कहते हैं कि जितने भी बुजुर्ग इस तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं वे बेटों के बीच संपत्ति के चलते विवाद होने के कारण भटक रहे हैं. जबकि कई मामलों में बेटे, बहू और बेटियों के वर्किंग होने, पोते-पोतियों के हॉस्टल आदि में रहने या व्यस्त रहने, एकल परिवार होने के चलते, परिवार से सहारा न मिलने की परेशानियां झेल रहे हैं.
बुजुर्गों का साथ देने की है जरूरत
डॉ. विजय कहते हैं कि इस समय बुजुर्गों का साथ देने की जरूरत है. अपने बच्चों को माता-पिता की कद्र करना सिखाने से पहले खुद ये सब करके दिखाने की जरूरत है. कितने भी व्यस्त हों लेकिन अगर रोजाना उन्हें कुछ समय दे रहे हैं उनकी समस्याएं सुन रहे हैं तो वे काफी ठीक महसूस करेंगे. सिर्फ परिवार ही नहीं बल्कि समाज को भी इस दिशा में सोचना पड़ेगा और कदम उठाने होंगे.