लखनऊ: चुनाव-दर-चुनाव बेहतर परिणाम के साथ सरकार बना रही भाजपा दो वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए अभी से चुनावी मोड में नजर आने लगी है। दूसरे दल जहां अभी 2022 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के सदमे से भी नहीं उबर सके हैं, वहीं सत्ताधारी खेमे ने मिशन-2024 के लिए अभी से बूथों पर मोर्चा सजाना शुरू कर दिया है।
भाजपा की अभी जिस तरह की तैयारी चल रही है, वह प्रतिद्वंद्वियों के लिए चुनौतियां बढ़ाती जा सकती हैं। इसी वर्ष मार्च में भाजपा ने लगातार दूसरी बार प्रदेश में सरकार बनाई और मई में प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लोकसभा चुनाव-2024 के लिए 75 सीटों का लक्ष्य भी तय कर दिया। योगी ने जितना बड़ा लक्ष्य रखा है, उसी के अनुरूप संगठन भी तैयारी किए बैठा था।
कार्यसमिति की बैठक में ही प्रदेश महामंत्री संगठन सुनील बंसल ने चुनावी तैयारी की रूपरेखा समझा दी थी। रणनीति अभी से जमीनी स्तर पर संघर्ष की है। प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में कमजोर बूथ चिन्हित करने का ऐलान हुआ और तय समय में वह वह चिन्हित कर भी लिए गए। सांसदों को संसदीय क्षेत्र के 100, जबकि विधायकों को विधानसभा क्षेत्र के 25 कमजोर बूथों की जिम्मेदारी सौंप दी गई।
जहां लोकसभा सदस्य नहीं हैं, वहां राज्यसभा सदस्य और जहां विधायक नहीं हैं, वहां विधान परिषद सदस्यों को जिम्मा दिया गया है। इसके साथ ही संगठन की मजबूत टीम बूथ सशक्तीकरण अभियान में लगाई गई है। सांसद के साथ 80 कार्यकर्ता और विधायक के साथ 10 कार्यकर्ताओं की टोली पसीना बहाने के लिए जुट गई है। जिस तरह से सांसदों को कमजोर बूथ वाले क्षेत्र में आमजन के साथ लगातार भेंट, उनके घर जाकर चाय पीने, लाभार्थियों से संपर्क करने का कार्यक्रम समझाया गया है, उससे साफ है कि जिन बूथों पर भाजपा हमेशा प्रतिद्वंद्वी दलों से मात खाती रही है, वहां इन डेढ़-दो वर्षों में ऐसी स्थिति बना देने की है कि कमजोर जमीन पर भी विरोधियों पर विजय का झंडा बुलंद कर दिया जाए।
खास बात है कि संगठन के रणनीतिकार बूथ केंद्रित अभियानों की श्रंखला तैयार कर रहे हैं, ताकि संगठन लगातार सक्रिय रहे। वहीं, दूसरी ओर कांग्रेस संगठन चुनावी चर्चा ही ढंग से शुरू नहीं कर सका। पिछले दिनों दो दिवसीय दौरे की घोषणा के कारण कांग्रेस महासचिव व प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा लखनऊ आईं, लेकिन निजी कारणों से औपचारिक बैठक कर एक ही दिन में दिल्ली लौट गईं।
लोकसभा चुनाव को लेकर सपा या बसपा की ओर से भी कोई विशेष बैठक या तैयारी फिलहाल नजर नहीं आई है। इस तरह से देखें तो जब दूसरे दल लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए रूपरेखा बनाना शुरू करेंगे, तब संभवत: भाजपा अपनी व्यूहरचना का पुनरीक्षण कर रही होगी। तब कमजोर रह गई कड़ियों को दुरुस्त करने का उसके पास सबसे अधिक समय होगा।