छत्तीसगढ़ में लगातार 15 साल सत्ता में रहने वाली भारतीय जनता पार्टी 2023 में वापसी के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। बीजेपी ने खासकर बस्तर और सरगुजा में पूरी ताकत झोंक दी है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का फोकस जीरो लैंड यानी उन इलाकों पर है, जहां 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को सीटें नहीं मिली है। सरगुजा और बस्तर की सियासी बंजर जमीन पर भाजपा कमल खिलाने ‘परिवर्तन यात्रा’ निकाल रही है। दोनों संभागों में कुल 26 विधानसभा सीटें हैं। कहा जाता है कि सत्ता की चाबी यहीं से निकलती है। वर्तमान में यहां भाजपा का एक भी विधायक नहीं है।
छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव को तीन महीने से भी कम समय बचा है। सत्ताधारी कांग्रेस और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा ने चुनावी तैयारियां तेज कर दी है। कांग्रेस जहां ‘भरोसे का सम्मेलन’ कार्यक्रम कर जनता तक पैठ मजबूत करना चाह रही है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी मोदी सरकार की उपलब्धियां और भूपेश सराकर की विफलताओं को परिवर्तन यात्रा के माध्यम से जनता के बीच लेकर जाने को तैयार है। बस्तर के दंतेवाड़ा और सरगुजा के जशपुर से परिवर्तन यात्राएं शुरू हो रही हैं। पहले चरण की शुरुआत केंद्रीय मंत्री अमित शाह दंतेवाड़ा से कर रहे हैं तो वहीं दूसरे चरण की शुरुआत भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा करेंगे। परिवर्तन यात्रा के समापन कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आएंगे।
‘बाबा’ और ‘काका’ को घेरने का पूरा प्लान
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की मजबूत सरकार है। 90 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस के पास अभी 71 विधायक हैं, जबकि भारतीय जनता पार्टी के पास सिर्फ 13 विधायक हैं। 3 सीटें जेसीसीजे और विधायक बसपा के हैं। वहीं एक सीट रिक्त है। सरगुजा क्षेत्र में बाबा के नाम से मशहूर टीएस सिंहदेव की जनता के बीच अच्छी पकड़ है। चुनाव से पहले कांग्रेस ने उन्हें डिप्टी CM भी बना दिया है। वहीं मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (काका के नाम से लोकप्रिय) को उनके विधानसभा क्षेत्र पाटन के साथ-साथ बस्तर में घेरने की रणनीति भाजपा ने बनाई है। भाजपा का फोकस जीरो लैंड सीटों पर है।
बस्तर में 12 और सरगुजा संभाग में कुल 14 सीटें हैं, जहां 2018 में बीजेपी को हताशा हाथ लगी थी। सूबे के इस इलाके में अपना खाता खोलने के लिए भाजपा के पास केवल 2 ही प्लान हैं। पहला मोदी सरकार के काम गिनाना और दूसरा नक्सलियों की पैठ को खत्म करने के दिशा में किए गए काम। इन दो प्लानों के अलावा पार्टी कांग्रेस और बघेल सरकार पर सियासी हमला बोलने में कितना कामयाब होती है, ये तो चुनावों के परिणाम के साथ ही सामने आएगा।
2018 के चुनाव में भाजपा को लगा था तगड़ा झटका
2018 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में भाजपा को तगड़ा झटका लगा था। सरगुजा संभाग में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। बस्तर में दंतेवाड़ा एकमात्र सीट मिली थी, वह भी उपचुनाव में हाथ से निकल गई। इसे देखते हुए भाजपा ने आदिवासी क्षेत्रों में फोकस करने का फैसला किया है। रणनीति के तहत भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व बार-बार छत्तीसगढ़ का दौरा कर रहे हैं। ऐसा माना जाता है कि छत्तीसगढ़ में सत्ता की चाबी खासकर बस्तर और सरगुजा संभाग के आदिवासी आरक्षित सीटों से ही खुलता है, इसीलिए भाजपा का पूरा जोर इन आदिवासी सीटों पर है।
2989 किलोमीटर की यात्रा, 84 सभाएं 7 रोड शो
छत्तीसगढ़ भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव परिवर्तन यात्रा के पहले चरण का नेतृत्व कर रहे हैं। यह यात्रा करीब 1728 किमी की होगी। अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों में करीब 45 आम सभाएं, 32 स्वागत सभाएं और 5 रोड शो होंगे। वहीं परिवर्तन यात्रा का दूसरा चरण जशपुर से शुरू होगा। इसे BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा हरी झंडी दिखाएंगे। दूसरे चरण की यात्रा का नेतृत्व छत्तीसगढ़ विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल करेंगे। दूसरी परिवर्तन यात्रा 1261 किलोमीटर की होगी। दूसरे चरण में 39 आम सभाएं, 53 स्वागत सभाएं और 2 रोड शो होंगे। दोनों परिवर्तन यात्रा का समापन 28 सितंबर को होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समापन कार्यक्रम में शामिल होंगे। दोनों यात्रा करीब 2989 किमी की होगी। परिवर्तन यात्रा में भाजपा के राष्ट्रीय से लेकर प्रदेश स्तर के नेता शामिल होंगे।
दोनों पार्टियों के लिए खास बस्तर और सरगुजा
2023 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस पार्टी को घेरने के लिए भाजपा मास्टर प्लान बनाकर काम कर रही है। बीजेपी ने आदिवासी सीटों पर सबसे ज्यादा फोकस किया है। छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण को लेकर बीजेपी आक्रामक मोड में नजर आ रही है। राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर आदिवासी महिला को मौका देने को भी पार्टी भुनाने की कोशिश करेगी। बता दें कि परिवर्तन यात्रा से पहले प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने बस्तर के 12 विधानसभा क्षेत्रों में हेलीकॉप्टर से धुआंधार दौरा किया था। उन्होंने कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देने के साथ जमीनी हकीकत पड़ताल की थी। बस्तर का किला दोनों पार्टियों के लिए खास मायने रखता है, लिहाजा कांग्रेस-भाजपा के नेता एक-दूसरे को चौतरफा घेराबंदी करने में लगे हैं।