छत्तीसगढ़

हाईकोर्ट ने ख़ारिज की किरायेदार की याचिका, दुकान मालिक के हक़ में सुनाया ये फैसला

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक याचिका को खारिज करते हुए कहा है कि भूमि स्वामी के मालिकाना हक को किरायेदार चुनौती नहीं दे सकता। इसके लिए एग्रीमेंट का होना भी आवश्यक नहीं है। सदरबाजार बिलासपुर की एक दुकान को कृष्ण बिहारी मिश्रा ने 42 वर्ष पहले किराये पर दिया था। इस समय इसमें मां शीतला ज्वेलर्स दुकान संचालित हो रही है। इसका किराया कृष्ण बिहारी मिश्रा को मिलता था, जो उनकी मृत्यु के बाद रविकांत मिश्रा को दिया जाता रहा। भू-स्वामी ने दुकान को खाली करने के लिए कहा और दुकान संचालक को रेंट कंट्रोल एक्ट 2011 के तहत नोटिस दिया। किरायेदार के मना करने पर वे रेंट कंट्रोल अथॉरिटी गए और दुकान खाली कराने के लिए 15 दिसंबर 2014 को आवेदन लगाया। दुकान संचालक श्रवण कुमार सर्राफ ने अधिकरण के समक्ष कहा कि उन्होंने दुकान का किराया देने में कोई चूक नहीं की है। इसे अधिक किराये में देने के लिए खाली कराया जा रहा है। बोर्ड ने दुकान मालिक का आवेदन खारिज कर दिया। इस फैसले को मकान मालिक ने किराया नियंत्रण बोर्ड के समक्ष चुनौती दी। बोर्ड ने मकान मालिक के पक्ष में फैसला दिया। इस फैसले को किरायेदार ने हाईकोर्ट में रिट याचिका से चुनौती दी। इसमें उन्होंने कहा कि रेंट कंट्रोल एक्ट 2011 के तहत किरायेदार की बेदखली के लिए किरायानामा का होना जरूरी है। इस मामले में ऐसा नहीं है इसलिए बोर्ड का आदेश रद्द किया जाना चाहिए। मामले की सुनवाई के बाद जस्टिस गौतम भादुड़ी व जस्टिस दीपक कुमार तिवारी की डबल बेंच ने कहा कि किरायेदार ने नोटिस देने के 6 माह बाद भी कब्जा नहीं छोड़ा है। यह संपत्ति नजूल की भूमि थी, जिसे सरकार ने बहुत पहले से भू स्वामी को अनुदान पर दिया था। भूमि स्वामी को किराया लेने तथा अपनी संपत्ति से किरायेदार को बेदखल करने का पूरा अधिकार है। उसे न्यायालय में वाद लाने से नहीं रोका जा सकता। इससे उसकी स्वतंत्रता का हनन होगा, चाहे इसमें किरायानामा तैयार नहीं किया गया हो। कोर्ट ने आदेश दिया है कि जिस तिथि को किरायेदार को नोटिस दी गई है, उसी तिथि से प्रत्येक माह का 1500 रुपये किराया भू स्वामी को हर्जाने के तौर पर दिया जाए।

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