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डॉलर के सामने रुपये के गिरने पर बढ़ी भारतीय पेरेंट्स की चिंता

हाल के दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आई है और यह एक डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 को छू गया है, जो उन अभिभावकों को परेशान कर रहा है, जिनके बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे हैं और साथ ही अमेरिकी विश्वविद्यालय की डिग्री के इच्छुक हैं.

Rupee Decline Effect: अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट भारतीय अभिभावकों के लिए बड़ी परेशानी का सबब बन सकती है, क्योंकि इससे उनके बच्चों की पढ़ाई पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. विशेषज्ञों और अभिभावकों ने यह आशंका जताई है.रुपये के मुकाबले डॉलर के मजबूत होने के प्रभाव से आयात, विदेश यात्रा, अमेरिका में शिक्षा और अन्य चीजें महंगी हो रही हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि छात्र अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने के लिए अन्य देशों की ओर रुख कर सकते हैं, क्योंकि रुपया लगातार डॉलर के मुकाबले कमजोर हो रहा है.

रुपया 80.05 प्रति डॉलर तक गिरा


हाल के दिनों में डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आई है और यह एक डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर 80.05 को छू गया है, जो उन अभिभावकों को परेशान कर रहा है, जिनके बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे हैं और साथ ही अमेरिकी विश्वविद्यालय की डिग्री के इच्छुक हैं. इसके कारण पर बात करें तो अभिभावकों को एक डॉलर खरीदने के लिए अधिक रुपये देने पड़ते हैं और अमेरिका में पढ़ने वाले उनके बच्चों को भी आर्थिक बजट बनाने को लेकर अपनी कमर कसनी पड़ रही है.

जानिए आपबीती


एक सेवानिवृत्त बैंकर वी. रेवती ने बताया “हमारी बेटी ने यूएस में पढ़ाई के दौरान अपने खर्च को सीमित किया है, क्योंकि हमने डॉलर खरीदे और उसे भेजे हैं. उसके अध्ययन के दौरान भी डॉलर की कीमत में इजाफा हुआ है.” निजी क्षेत्र के एक कर्मचारी वी. राजगोपालन ने बताया, “मेरी बेटी ने अपनी शिक्षा पूरी कर ली है और वह जॉब ट्रेनिंग पर है. उसने डॉलर में शिक्षा ऋण लिया है और उसे वापस कर रही है. अब चिंता यह है कि अगर उसे अमेरिका में रहने के लिए आवश्यक वीजा नहीं मिलता है, तो उसे वापस आना होगा. तब ऋण चुकौती एक मुद्दा होगा.”

क्या कहते हैं जानकार


फंड्सइंडिया के रिसर्च चीफ अरुण कुमार ने कहा, “अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमजोर होने के प्रमुख कारण वैश्विक कारक हैं, जिनमें रूस-यूक्रेन युद्ध, कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें, ग्लोबल लिक्विडिटी और महत्वपूर्ण एफआईआई बहिर्वाह आउटफ्लो शामिल हैं.” वहीं अन्य वित्तीय विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये के अस्थायी झटके से छात्रों की विदेश में पढ़ने की योजना पूरी तरह से प्रभावित नहीं होनी चाहिए. यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि छात्र कई वर्षों से विदेश में अपने अध्ययन की गतिविधियों की योजना बना रहे हैं. यह एक ऐसा निर्णय है जिसके जल्दी बदलने की संभावना नहीं है.

दूसरे देशों की ओर रुख कर सकते हैं छात्र


हालांकि ऐसी परिस्थिति में छात्र अध्ययन के लिए अन्य गंतव्यों पर भी विचार कर सकते हैं, मगर अमेरिका के विपरीत उन देशों में नौकरी पाने को लेकर समस्याएं हैं. न केवल माता-पिता, जिनके बच्चे अमेरिका में पढ़ रहे हैं, वे चिंतित हैं, बल्कि उन बच्चों के माता-पिता भी चिंतिंत हैं, जिन्हें कोई रोजगार मिला है और वहां रहने के लिए एक प्रासंगिक वीजा की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

विदेश में नौकरी कर रहे भारतीयों के लिए डॉलर का चढ़ना अनुकूल


भारतीय छात्र, जिन्होंने अमेरिका में अपनी शिक्षा पूरी की है और वहां नौकरी भी शुरू कर दी है, वे अब खुश हैं, क्योंकि जो डॉलर वे घर वापस भेजते हैं उससे रुपये के तौर पर बदलने से उन्हें अधिक पैसे मिल रहे हैं.

करेंसी में उतार चढ़ाव को स्थायी स्थिति नहीं माना जाना चाहिए


वैश्विक सेवा प्रदाता और अंतरराष्ट्रीय शिक्षा मंच एम. स्क्वायर मीडिया के संस्थापक और सीईओ संजय लौल ने कहा, “रुपये का गिरना एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, लेकिन मुद्राओं के मूल्य में उतार-चढ़ाव अस्थायी विनिमय दरों का स्वाभाविक परिणाम है, जो कि अधिकांश प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के लिए सही है.” उन्होंने कहा, “इसे स्थायी स्थिति नहीं माना जाना चाहिए और छात्रों को शिक्षा जैसी अपने जीवन के महत्वपूर्ण घटनाक्रम के संबंध में स्थायी निर्णय लेने से बचना चाहिए.” उनके अनुसार, अमेरिका में अंतरराष्ट्रीय शिक्षा खर्च में अपेक्षित वृद्धि के बावजूद, छात्रों के लिए कई लाभों के कारण देश एक अत्यधिक आकर्षक अंतरराष्ट्रीय शिक्षा गंतव्य बना हुआ है, जिनमें से एक शिक्षा की गुणवत्ता है, जो उन्हें मिलेगी.

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